बस होने दो, नई भोर..!

सुन रहा हूँ कब से, एक ओर से, बड़ी देर से, बदलेगा वक्त तेरा, देर से, पर ज़ोर से || बंद होगी मुट्ठी, कदमों में जहाँ होगा, जो होगा, तेरे पास, शायद ही कहीं होगा || सोच में हूँ उसकी, हर रोज़ देखता हूँ, बस उम्र गुजरती है, बड़ी तेज़ गुजरती है || मायूसिओं का […]

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बड़ी बेबाक़ है जिंदगी…!

बड़ी बेबाक़ है जिंदगी, कान में फुसफुसाती नहीं, धड़ाके से उतर जाती है, मेरे सपनो पर हकीकत लेकर || टूटता है शीशे सा, बिखर जाता है फ़र्श पर, अरमान हैं हमारे, कुछ और नहीं, ज़रा उठाना उसे, फुरसत लेकर || चुभ जाती है, उसकी बेबाकी, बड़ी बेशर्म सी मालूम पड़ती है, कभी मोहब्बत थी, जिंदगी […]

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स्वच्छ भारत अभियान – पप्पू की छोटी सोच शौच पर!

दोस्तों, बहुत दिनों बाद लौटा हूँ! एक नयी पेशकश के साथ, “सूखे शब्द” ये एक गंभीर प्रणाली का काव्य कलेक्शन है पर मैंने पहली बार हास्य में अपना हाथ आजमाया है। जहाँ पर मैंने एक नाटक “Script” स्वच्छता अभियान पर लिखी है और इस “Script” पर से “KFE Time” पर एक “Youtube Video” भी पब्लिश […]

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जब तक ये दुनिया, तुझे पागल न कहे…!

हारना जरूरी है, जीतने के लिए, अक्सर कोई जीतता नहीं, पहले खेल में, कई बाज़ी हारने के बाद, सबब याद आया, की कैसे जीत सकता हूँ, मैं अब की खेल में ॥ हारना जरूरी है, पर टूटना नहीं, जो टूट गया, तो फिर खेलेगा कैसे, जिंदगी कई राज खोलती है, मेहनत पर अक्सर, जीत सकता […]

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रुधिर सी बहती, नस नस में – सराहना…

तुम हो, मेरे प्राण सामान, तुम बिना जीना, मुश्किल है, तुम ना हो तो, वीराना है, तुम आ जाओ, महफ़िल है || वैसे हो तुम, धड़कन जैसी, रुधिर सी बहती, नस नस में, सब कुछ, संभव हो जाता है, जीवन होता है, बस में || देख कर तेरी, प्रखर छवि को, जलता सूरज जलता है, […]

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“आशा” है ये मानस की….

भाई दिखकर, फिर छुप जाती है, जलती बुझती रहती है, नयी रवानी लाती है, फिर नयी कहानी बुनती है || मैं शब्दों के ढेर पर बैठा, कभी कोसता हूँ, पुचकारता हूँ, वो नए इठलाते, दर्पण सा, बस नए नए रूप, दिखलाती है || “आशा” है ये मानस की, ये निराश भी करती है, पर जीना […]

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भिखारी नहीं है साहब, ज़रा ध्यान से देखो…

शर्म हैं आँखों में इतनी, की हम शर्मसार हो जाएँ, फिर भी बेबसी, में हाथ उठाते हैं, सीने की चोट, जब भी पेट में उतरती है, ना चाहते हुए भी, हाथ फैलाते हैं || इंसानियत पर सवारी करते, कुछ लोग बगल से निकल जाते हैं, और फरिश्तों के नाम पर, चंद सिक्के फेककर, जरूरतों को […]

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उसे कवि यहां पर कहते हैं…!

चार शब्द में कहता है, तोल तोल कर लिखता है, वैसे तो परिभाषा ही नहीं, पर आशा है, तुम समझोगे || कभी तीखे बाण चलाता है, कभी मंद मंद मुस्काता है, कभी व्यंग कटार उठाता है, और, थोड़े में कह जाता है || कभी अंतर मन है, भरा हुआ, कभी निराशाओं में, घिरा हुआ, कभी […]

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कभी सहमे बच्चे देखें हैं…..!

कभी सहमे बच्चे देखें हैं, सड़कों के किनारों पर, लाचार, निसहाय खड़े हुए, बस एक हाथ की आशा में || कोई हाथ, बढ़ाता नहीं, अनदेखा कर, बस चलता है, वो अब भी खड़े हैं, रोटी को, नहीं मिलने पर निराशा में || चल परे भटक, कहीं दूर निकल, सुनकर भी, हाथ बढ़ाते हैं, दिल नहीं […]

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मन अपने मन की करता है….!

बड़ा चंचल है, कहीं रुकता नहीं, कहीं एक जगह पर टिकता नहीं, बस घूमता है, नहीं मानता है, बस अपने मन की करता है ॥ अरे अपने मन की करता है, मेरा मन ही है, कोई और नहीं, मैं रोकता हूँ, पर रुकता नहीं, मन अपने मन की करता है ॥ जब पूछता हूँ, कुछ […]

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