शर्म हैं आँखों में इतनी,
की हम शर्मसार हो जाएँ,
फिर भी बेबसी,
में हाथ उठाते हैं,
सीने की चोट,
जब भी पेट में उतरती है,
ना चाहते हुए भी,
हाथ फैलाते हैं ||
इंसानियत पर सवारी करते,
कुछ लोग बगल से निकल जाते हैं,
और फरिश्तों के नाम पर,
चंद सिक्के फेककर,
जरूरतों को पूरा कर जाते हैं ||
महलों की नहीं,
सड़को की ये कहानी है,
हमारे बिस्तर पर तो किस्से हैं,
सोने के लिए,
वो खुद एक किस्सा हैं,
पर उनके किस्सों में,
ना कोई राजा हैं,
और ना कोई रानी है ||
चाहतों के ढेर में,
सिग्नल के किनारे,
दो ढूंढ़ती हुई, नजरें
हमारे फेंके हुए,
कचरे को निहारें,
दो वक्त की रोटी से,
भूंख से लड़ने को तैयार,
किसी ना किसी तरह,
खुद को बचाये रखने की,
जद्दोज़हद में,
हमारे इशारों को निहारें ||
भिखारी नहीं है साहब,
ध्यान से देखो ज़रा,
वो भी इंसान है,
हमारे, तुम्हारे जैसा,
हांड, मास का बना हुआ ||
फर्क इतना है, की तुम,
देवालयों में मांगते हो,
और वो अब भी,
एक ग़लतफ़हमी में,
तुम से मांगता है ||
मदद से बड़ा कोई धर्म नहीं है, कृपया असहाय की सहायता करें।
ओह्ह , बहुत मार्मिक …….
LikeLiked by 1 person
thanks buddy
LikeLiked by 1 person
बहुत खूब लिखा आपने—👌👌👌
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद मधुसूदन जी, मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है ये जानकर की आप को मेरी रचना पसंद आयी…
LikeLiked by 1 person
Bahut hi sundar rachna
LikeLike
धन्यवाद मधुसूदन जी
LikeLiked by 1 person
Bhai its rohit
LikeLike
I am so sorry dear, Thanks for reminder…
Thanks Rohit
LikeLiked by 1 person
Very nice
LikeLiked by 1 person
Thank You Deepti ji
LikeLike