सुन रहा हूँ कब से,
एक ओर से, बड़ी देर से,
बदलेगा वक्त तेरा,
देर से, पर ज़ोर से ||
बंद होगी मुट्ठी,
कदमों में जहाँ होगा,
जो होगा, तेरे पास,
शायद ही कहीं होगा ||
सोच में हूँ उसकी,
हर रोज़ देखता हूँ,
बस उम्र गुजरती है,
बड़ी तेज़ गुजरती है ||
मायूसिओं का दौर,
थमता क्यों नहीं है,
मिलते हैं गम,
ख़ुशी मिलती नहीं है ||
शोर है, शाम से,
आ रही है नहीं भोर,
बैठा हूँ आराम से,
बस होने दो, नई भोर ||
शीर्षक : आशा ही आबाद है!
khubsurat ….sandesh deti apki kavita.👌👌
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Dhanywaad Madhusudan ji
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Love the poem
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