उसे कवि यहां पर कहते हैं…!

चार शब्द में कहता है,
तोल तोल कर लिखता है,
वैसे तो परिभाषा ही नहीं,
पर आशा है, तुम समझोगे ||

कभी तीखे बाण चलाता है,
कभी मंद मंद मुस्काता है,
कभी व्यंग कटार उठाता है,
और, थोड़े में कह जाता है ||

कभी अंतर मन है, भरा हुआ,
कभी निराशाओं में, घिरा हुआ,
कभी तेज प्रकाश है, विद्यम्मान,
कभी सबसे आगे, रवि सामान ||

कभी प्रेम भाव में है, विभोर,
कभी विरह में जलता जाता है,
बस देखता है, वो शब्दों से,
जो मिलता है, लिखता जाता है ||

बस लिखना उसकी आदत है,
और शब्द सी, उसकी फितरत है,
बन श्याही, कागज पर फैलती है,
और रेंगते रेंगते कहती है ||

आशा है, की जान गए,
तुम उसको पहचान गए,
वो रवि से ऊँचे बैठा है,
उसे कवि यहां पर कहते हैं ||

मैं भी एक कवि हूँ, छोटा सा ही सही। ये रचना मेरे सभी कवियों और कवियत्रिओ को समर्पित है।

Dedicated To All Poets….

आशा है, आपको पसंद आएगी।

12 thoughts on “उसे कवि यहां पर कहते हैं…!

  1. हम तो बहुत छोटे हैं या ये कहें कि सिखने की राह पर हैं अतः हमसे ना कहें हम सबसे कह सकते हैं जो की जलानेवाला बस्तु से भी अर्थ निकाल लेते हैं। आपने बिलकुल सही लिखा।

    Liked by 2 people

    1. सिंह साहेब, हम एक दूसरे को भले ही व्यक्तिगत तौर पर ना जानते हों, पर आपकी रचनायें आप की सक्षमता को बयां करती हैं और मेरे लिए ये एक बड़ी बात हैं, की आप हमारे मित्र हैं फिर वो WordPress पर ही सही…..

      Like

      1. आपके इस महान सोच के लिए कोटि कोटि आभार।वैसे हम भी आप सब से मिलना अपना सौभाग्य समझता हूँ।सुक्रिया।

        Liked by 1 person

  2. जहाँ न पहुँचे रवि
    वहाँ पहुँचे कवि …..

    आपने अपनी कविता के माध्यम से सिद्ध कर दिया 👍

    बहुत बहतरीन ओर भावयुक्त लिखते है आप 👍👍👍👍😊😊😊😊👍👍👍👍

    Liked by 1 person

Leave a comment