रुधिर सी बहती, नस नस में – सराहना…

तुम हो, मेरे प्राण सामान,
तुम बिना जीना, मुश्किल है,
तुम ना हो तो, वीराना है,
तुम आ जाओ, महफ़िल है ||

वैसे हो तुम, धड़कन जैसी,
रुधिर सी बहती, नस नस में,
सब कुछ, संभव हो जाता है,
जीवन होता है, बस में ||

देख कर तेरी, प्रखर छवि को,
जलता सूरज जलता है,
चाँद भी तुझ सा, बनना चाहे,
तेरे नक़्शे कदम पर, चलता है ||

तुम मुस्काती, शीतलता हो,
हँसती हो तो, जगमग सबकुछ,
मुस्काती, तुम अच्छी लगती,
लगता अच्छा, जग में सबकुछ ||

तुम हो तो, जीवन प्यारा है,
और मेरे जीवन, का सहारा है,
मैं जब जब डूबा, भवसागर में,
तेरे हाथों का मिला, किनारा है ||

है कोई गुणगान नहीं ये,
अंतर मन की भावना है,
जो नित नित बसती, ह्रदय में मेरे,
उसकी ये सराहना है ||

11 thoughts on “रुधिर सी बहती, नस नस में – सराहना…

    1. आप जैसे व्यक्तित्तव को मेरी रचना पसंद आयी, इससे बढ़कर मेरे लिए क्या हो सकता है, धन्यवाद …

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