जब तक ये दुनिया, तुझे पागल न कहे…!

हारना जरूरी है, जीतने के लिए,
अक्सर कोई जीतता नहीं,
पहले खेल में,
कई बाज़ी हारने के बाद,
सबब याद आया,
की कैसे जीत सकता हूँ,
मैं अब की खेल में ॥

हारना जरूरी है, पर टूटना नहीं,
जो टूट गया, तो फिर खेलेगा कैसे,
जिंदगी कई राज खोलती है,
मेहनत पर अक्सर,
जीत सकता है तू, गर
खेलेगा डटकर ॥

बड़े आराम से कटी होगी,
पहले कभी शायद,
कभी जीया होगा फुर्सतों से,
सो कर कभी शायद,
पर मिलता उसी को है,
जो कुंदन सा जलता है,
अपने सपनो के साथ साथ,
काँटों पर पलता है ॥

तो मिलती है वजह कोई,
तुझे सपनो से जोड़ती तो,
आँखों से नींद, ओझल कर,
कर्मो से बांध, सपनो को,
और पीछा कर, पागल बनकर,
अपने सपनो को, कर्मो से बुनकर,
तब तक दौड़, जब तक हासिल न हो,
रुकना नहीं, जहाँ तेरी मंजिल न हो॥

अरे ये संभले हुए, लोगों की दुनिया है,
पागलपन जरूरी है, पाने के लिए,
और तब तक मत रुकना,
जब तक ये दुनिया,
तुझे पागल न कहे,
तेरे सपनो के लिए..!

 

5 thoughts on “जब तक ये दुनिया, तुझे पागल न कहे…!

  1. पागलपन जरूरी है, पाने के लिए,
    और तब तक मत रुकना,
    जब तक ये दुनिया,
    तुझे पागल न कहे…लाजवाब लेखन।बहुत बढ़िया।

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    1. आपको अच्छा लगा, ये मेरे लिए बहुत ही सम्मान और गौरव की बात है,
      ह्रदय से धन्यवाद मधुसूदन जी।

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