हर जगह में,
मैं मुक्कम्मल नहीं,
इसलिए मैंने “माँ” बनाई,
बड़े ही शीर्ष पर बैठकर सोचता हूँ,
वाह रे तेरी खुदाई ||
ममता का आँचल बनाया,
और दो ममतामयी आँखें,
हाथ जब फेरती है सर पर,
सारे दुःख दर्द जड़ से भागे ||
दो आँखें बनाई छलकती सी,
ह्रदय भर दिया अपार ममता से,
मुझको दिया वो सब कुछ,
जो कहीं अधिक था उसकी छमता से ||
बचपन तो सिर्फ शुरुआत था मेरा
उसने संभाला मुझे जवानी तक,
तू मुझ में यूँ ही बनी रहे, माँ
मेरी आने वाली हर इक कहानी तक ||
कितना लिखा है, कितना कहा है,
मैं क्या लिखू, और कितना कहूँ,
बस तू है तो जीवन, गुलशन है,
और तू नहीं तो, बस एक उलझन है ||
बस अब समेटता हूँ शब्दों को,
क्यों की महिमा में उसकी विराम नहीं,
तूने जितना दिया है जीवन भर,
उसको लौटना आसान नहीं ||
हे जननी, तू ईश्वर है,
माँ, मैं तेरी ही रचना हूँ,
मैंने ईश्वर को देखा है, और
मैं रोज पूजता हूँ उसको ||
Wah bhai behad hi khoobsurat
LikeLiked by 1 person
Thanks bhai
LikeLiked by 1 person
Speechless !
LikeLiked by 1 person
Thanks Deepti ji
LikeLike
Heart touching
LikeLiked by 1 person