क्या खूब नसीब गम ने भी पाया होगा,
इक ख़ुशी के लिए, खुदा ने तड़पाया होगा ||
बदल जाता है, मौसम यहाँ हर हाल में,
हर हाल में, बस एक ही मौसम पाया होगा ||
कह बैठता है इंसा हकीकत, सुकूं पाने के लिए,
उसने अपना दर्द, किस मर्ज को सुनाया होगा ||
हर कोई गिर के उठ जाता है, आबाद होने के लिए,
सोचो क्या बर्बाद मुक्क़दर, उसने पाया होगा ||
दर्द मेरा गजल बन जाता है, गुनगुनाने के लिए,
सोचो गम ने जताने के लिए, क्या गाया होगा ||
क्या खूब नसीब गम ने भी पाया होगा,
इक ख़ुशी के लिए, खुदा ने तड़पाया होगा ||